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ए॒वा न॑ इन्द्रो॒तिभि॑रव पा॒हि गृ॑ण॒तः शू॑र का॒रून्। उ॒त त्वचं॒ दद॑तो॒ वाज॑सातौ पिप्री॒हि मध्वः॒ सुषु॑तस्य॒ चारोः॑ ॥७॥

English Transliteration

evā na indrotibhir ava pāhi gṛṇataḥ śūra kārūn | uta tvacaṁ dadato vājasātau piprīhi madhvaḥ suṣutasya cāroḥ ||

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Pad Path

ए॒व। नः॒। इ॒न्द्र॒। ऊ॒तिऽभिः॑। अ॒व॒। पा॒हि। गृ॒ण॒तः। शू॒र॒। का॒रून्। उ॒त। त्वच॑म्। दद॑तः। वाज॑ऽसातौ। पि॒प्री॒हि। मध्वः॑। सुऽसु॑तस्य। चारोः॑ ॥७॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:33» Mantra:7 | Ashtak:4» Adhyay:2» Varga:2» Mantra:2 | Mandal:5» Anuvak:3» Mantra:7


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (इन्द्र) राजन् ! आप (ऊतिभिः) अन्वेक्षण आदि रक्षा आदिकों से (एवा) ही (गृणतः) उपदेशक (कारून्) शिल्पी (नः) हम लोगों की (अव) रक्षा कीजिये और हे (शूर) भय से रहित ! (वाजसातौ) सङ्ग्राम में (त्वचम्) त्वचा को आच्छादन करने और रक्षा करनेवाले कवच को (ददतः) देते हुए (सुषुतस्य) उत्तम प्रकार संस्कार किये गये (मध्वः) मधुर और (चारोः) उत्तम जन के ऐश्वर्य्य का (पाहि) पालन कीजिये और (उत) भी (पिप्रीहि) प्राप्त हूजिये ॥७॥
Connotation: - हे राजन् ! आप शूरवीर विद्वान् शिल्पीजनों की रक्षा कर प्रजाओं का निरन्तर पालन करके सङ्ग्राम में शत्रुओं को जीत कर प्राप्त हूजिये ॥७॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे इन्द्र ! त्वमूतिभिरेवा गृणतः कारून्नोऽस्मानव। हे शूर ! वाजसातौ त्वचं ददतः सुषुतस्य मध्वश्चारोर्जनस्यैश्वर्य्यं पाहि उत पिप्रीहि ॥७॥

Word-Meaning: - (एवा) निश्चये। अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (नः) अस्मान् (इन्द्र) (ऊतिभिः) अन्वेक्षणादिरक्षादिभिः (अव) रक्ष (पाहि) (गृणतः) उपदेशकान् (शूर) निर्भय (कारून्) शिल्पिनः (उत) अपि (त्वचम्) त्वगाच्छादकं रक्षकवर्म (ददतः) (वाजसातौ) सङ्ग्रामे (पिप्रीहि) प्राप्नुहि (मध्वः) मधुरस्य (सुषुतस्य) सम्यक्संस्कृतस्य (चारोः) उत्तमस्य ॥७॥
Connotation: - हे राजँस्त्वं शूरान् प्राज्ञाञ्छिल्पिनो जनान् रक्षित्वा प्रजाः सततं सम्पाल्य सङ्ग्रामे शत्रूञ्जित्वा प्राप्नुहि ॥७॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे राजा! तू शूर वीर विद्वान शिल्पीजनांचे रक्षण करून प्रजेचे निरंतर पालन करून युद्धात शत्रूंना जिंकून घे. ॥ ७ ॥